


नई दिल्ली। कोरोना वायरस का संक्रमण देश और दुनिया में बढ़ता ही जा रहा है। दुनियाभर के लोगों को कोरोना की एक सुरक्षित और कारगर वैक्सीन का इंतजार है, जो टीकाकरण के लिए जल्द से जल्द उपलब्ध हो सके। रूस और चीन ने कोरोना की वैक्सीन को मंजूरी दे दी है, जबकि भारत, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों में भी जल्द ही वैक्सीन तैयार होने की संभावना है। इस बीच पहले से उपलब्ध बीसीजी वैक्सीन में भी कोरोना से बचाव की उम्मीद देखी जा रही है। वैज्ञानिक इस संभावना पर काम कर रहे हैं कि टीबी के प्रति सुरक्षा देने वाली यह वैक्सीन कोरोना वायरस से भी बचाव कर सके। दरअसल ब्रिटेन के चिकित्सकों ने एक क्लिनिकल ट्रायल शुरू किया है, जिसमें कोरोना वायरस पर बीसीजी वैक्सीन की प्रभावकारिता जांची जाएगी। टीबी यानी ट्यूबरक्लोसिस से दी जाने वाली यह वैक्सीन कई देशों में सरकारी टीकाकरण अभियान का हिस्सा है। कोरोना महामारी से जारी जंग के बीच ब्रिटेन का यह ट्रायल अंतरराष्ट्रीय ब्रेस ट्रायल का हिस्सा है। इसके तहत कुल 20 हजार सहभागियों पर बीसीजी वैक्सीन का ट्रायल किया जाने वाला है। इस ट्रायल के जरिए विशेषज्ञ ये पता लगाएंगे कि बीसीजी की वैक्सीन के इस्तेमाल से इंसान का इम्यून सिस्टम क्या कोरोना वायरस के प्रति सुरक्षा दे पाएगा। मालूम हो कि इस संबंध में पूर्व में भी कुछ अध्ययन हो चुके हैं। इन शोध अध्ययनों में ऐसे संकेत मिल चुके हैं कि बीसीजी की वैक्सीन से इंसानी शरीर का इम्यून सिस्टम मजबूत होता है, जो अन्य वायरल बीमारियों को रोकने में भी कारगर है। कोरोना वायरस महामारी के खिलाफ बीसीजी वैक्सीन के प्रभाव का पता लगाने के लिए ब्रिटेन की एक्स्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता दो हजार स्वास्थ्यकर्मियों पर इसका ट्रायल कर रहे हैं। वहीं अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुल 20 हजार लोगों को इस ट्रायल में शामिल किया जा रहा है।एक्स्टर यूनिवर्सिटी के प्रो. जॉन कैंपबेल के मुताबिक, अगर यह वैक्सीन कोरोना के खिलाफ कारगर साबित होती है तो यह बड़ी कामयाबी होगी। इससे पूरी दुनिया राहत की सांस लेगी। इस ट्रायल में हिस्सा लेने वाले सहभागियों पर वैक्सीन के प्रभाव की एक साल तक निगरानी की जाएगी। इस दौरान यह देखा जाएगा कि वे लोग कोरोना से संक्रमित होते हैं या नहीं।शोधकर्ता इस व्यापक ट्रायल में यह भी पता करेंगे कि अगर सहभागी लोग संक्रमित होते हैं तो क्या कम बीमार पड़ते हैं। खबरों के मुताबिक, ट्रायल के शुरुआती नतीजे छह से नौ महीने में आ सकते हैं। बता दें कि पूर्व में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की एक टीम द्वारा किए गए शोध को सेल जर्नल ने प्रकाशित किया था, जिसमें बुजुर्गों पर भी इसका अच्छा असर दिखा था।