मिठाईयों में खपेगा सैंकड़ो टन दूषित मावा

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  बीकानेर। मिलावट माफियाओं का गढ कहे जाने वाले बीकानेर में मुनाफाखोर जमात के मावा कारोबारी सैंकड़ो टन दूषित मावा दिवाली की मिठाइयों में खपायेगें। इसके लिये उन्होने शहर के कोल्ड स्टोर्स में अभी से बंपर स्टॉक करना शुरू कर दिया है। हैरानी की बात तो यह है कि हर साल दिवाली सीजन के मौके पर मावे से बनी मिठाईयों के सैंपल  फेल होने के बावजूद चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारी दूषित मावे का स्टॉक करने वालों पर कानूनी श्ंिाकजा कसने में नाकाम बने हुए है। इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि मावे से बनी मिठाईयों के 40-45 प्रतिशत नमूने दशकभर से फेल होने के बावजूद दूषित मावे से बनी मिठाईया बेचने वालों पर कार्यवाही का आंकड़ा शून्य है। जबकि बीकानेर जिला संभाग मुख्यालय है,और यहां चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के संयुक्त निदेशक भी तैनात है,इसके अलावा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी समेत खाद्य निरीक्षकों की टीम भी तैनात है। इन सबकी तैनाती के बावजूद बीकानेर में बड़े पैमाने पर दूषित मावे का स्टॉक और उससे बनी मिठाईयों की बिक्री का खेल कई सवाल खड़े कर रहा है। इस खेल के चलते हर साल 40 से 45  प्रतिशत नमूने के फेल होने का सीधा का मतलब है कि मिठाईयों के नाम पर लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया जा रहा है और इसकी रोकथाम के जिम्मेदार जेबें भरने में जुटे है। सिस्टम की इस नाकामी के चलते दिवाली का त्यौहारी सीजन शुरू होने से पहले ही मावा कारोबारियों और मिठाई कारोबारियों ने अपनी तैयारियां शुरू कर दी है। सर्वाधिक मिठाईयां घटिया और दूषित मावे की बनी होने के कारण सबसे ज्यादा नमूनें भी मावे की मिठाईयों के ही फेल होते है। इसके अलावा देशी घी के नाम पर मिलावटी घी की मिठाईयों के नमूने भी हर साल बड़ी तादाद में फेल होते है। इसके बावजूद न तो सरकार चेत रही है और ना ही स्वास्थ्य विभाग गंभीर है। जानकारी में रहे कि दूषित मावे से बनी मिठाईयों का मामला संज्ञान में आने के बाद तत्कालीन जिला कलक्टर कुमार पाल गौतम ने संयुक्त टीम का गठन कर कार्यवाही के निर्देश दिये थे,लेकिन इसी बीच कोरोना की दस्तक के कारण कार्यवाही की मुहिम नहीं चल पायी।
*मिलावटखोरों के लिए नियम ताक पर*
आमजन के स्वास्थ्य को ताक पर रखकर मिलावटखोर मुनाफा कमाने का कोई मौका नहीं छोड़ता। दिवाली जैसे त्योहारों पर मिठाइयों की सर्वाधिक मांग होती हैं। ऐसे में बाजार में सिंथेटिक दूध और मावे की मिठाइयों में कम गुणवत्ता के रंगों का प्रयोग किया जाता है। मिठाई विक्रेता लडडू, बर्फी, छेना, जलेबी, इमरती आदि में घटिया रंगों का प्रयोग करते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है। इसके अलावा जिले के ग्रामीण अंचल में घटिया मावे, पनीर, तेल, घी का इस्तेमाल कर मिठाइयां तैयार की जा रही है।
*हर बार होती है दिखावे की कार्यवाही*
जिले के स्वास्थ्य महकमे की ओर से मिलावटखोरों के खिलाफ  हर बार दिखावे की कार्रवाई की जाती है, इससे मिलावटखोरों के कोई खास फर्क नहीं और वह त्यौहारी सीजन आते ही वे फिर से सक्रिय हो जाते हैं। विभाग त्योहारी सीजन में अभियान के तौर पर कार्रवाई करने का दावा करता है। लेकिन जांच के लिए भेजे जाने नमूनों की रिपोर्ट कई माह तक नहीं आती है। ऐसे में मिलावटी भी विभागीय कार्रवाइयों की परवाह नहीं करते हंै। सूत्रों की मानें तो स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई से बेखौफ मिठाई विक्रेता कई दिन पूर्व से ही गोदामों में मावे का स्टॉक शुरू कर देते हैं।
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