


नई दिल्ली: पायलट कैम्प का फिर से कांग्रेस आलाकमान से मोहभंग हो रहा हैं. तीन सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट का अभी तक कोई अता पता नहीं होने से मोहभंग हो रहा हैं. प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप से दो माह पहले पायलट की घर वापसी हुई थी और पायलट कैम्प की शिकायतों या मांगों पर फैसला लेने के लिए सोनिया गांधी ने तीन सदस्यीयों की एक कमेटी बनाई थी. अहमद पटेल-केसी वेणुगोपाल-अजय माकन की कमेटी बनाई थी. अब तक कमेटी की तीन-चार बैठकें भी हो चुकी हैं. कोरोना संकट के कारण ज्यादातर वर्चुअल बैठकें हुई. सचिन पायलट-अजय माकन की भी दो तीन बार मुलाकात हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई साफ तस्वीर सामने नहीं आई है. इसी बीच अहमद पटेल एवं अजय माकन कोरोना की चपेट में आए. तीन सप्ताह बाद अब माकन पूरे तौर पर स्वस्थ हो रहे हैं, लेकिन अहमद भाई अभी भी कोरोना उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती हैं.
भविष्य में तीन सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट आने की कोई संभावना नहीं:
कुल मिलाकर निकट भविष्य में तीन सदस्यीय कमेटी की रिपोर्ट आने की कोई संभावना नहीं हैं. आखिर कब होगा मंत्रिमंडल विस्तार, राजनीतिक नियुक्तियां एवं पीसीसी का पुनर्गठन? आखिर कब एडजस्ट होंगे पायलट कैम्प के विधायक इन तीनों स्थानों पर? जबकि दो माह से बागी विधायक उम्मीद लगाए बैठे हैं. इसी बीच गहलोत सरकार ने RPSC में राजनीतिक नियुक्तियां कर दी. नियुक्त लोगों में से ज्यादातर गहलोत के पुराने वफादार हैं, लेकिन इन नियुक्तियों में संभवत: पायलट कैम्प का कोई आदमी नहीं हैं. इस घटनाक्रम से और ज्यादा पायलट कैम्प का मूड उखड़ गया है. फोन टैपिंग प्रकरण में पायलट के मीडिया एडवाइजर के खिलाफ दर्ज FIR से भी पायलट-गहलोत के बीच रिश्ते और बिगड़े हैं. वैसे भी घर वापसी के बाद भी पायलट कैम्प का मन कांग्रेस में नहीं लग रहा हैं. मुख्यमंत्री और पीसीसी से बागी विधायकों ने अभी तक एक अजीब किस्म की दूरी बना रखी है. दूसरी ओर मंत्रिमंडल विस्तार-राजनीतिक नियुक्तियां-पीसीसी पुनर्गठन में हो रहे विलंब से पायलट कैम्प के विधायकों में निराशा आ रही हैं. खुद पायलट के नेतृत्व के प्रति आ रही निराशा और भरोसा टूट रहा हैं. दूसरी ओर गहलोत कैम्प के लोग बागी विधायकों को साधने में जुटे है. ऐसे में धीरे-धीरे पायलट कैम्प के शेष विधायकों की भी गहलोत कैम्प की ओर लौट आने की संभावना जताई जा रही हैं. इस सारे घटनाक्रम से अब पायलट कैम्प फिर से आर-पार की लड़ाई लड़ना चाहता हैं.
आज भी भाजपा का वहीं पुराना स्टैंड:
पहले की तरह इस बार भी भाजपा के अप्रत्यक्ष सहयोग से गहलोत सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ना चाहता हैं. अलबत्ता इस सारे घटनाक्रम में आज भी भाजपा का वही पुराना “स्टैंड” है. “भाजपा अपनी ओर से गहलोत सरकार को अस्थिर करने की कोशिशें” नहीं करेगी.लेकिन अगर कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई के कारण राज्य में अस्थिरता के हालात बनते हैं, तो प्रमुख विपक्षी दल के नाते भाजपा अपनी भूमिका निभाएगी. अब इस सारे माहौल में पायलट कैम्प और भाजपा के बीच कोई अघोषित समझौता हो जाने की भी खबरें हैं, दोनों पक्षों के बीच कुछ मुद्दों पर आम सहमति बन जाने की खबरें है. इस समझौते के अनुसार सतीश पूनियां के नाम पर आम राय बन रही है. मुख्यमंत्री पद के लिए आम राय बन रही है. गजेन्द्र सिंह शेखावत के भी पूनियां के नाम पर अपनी सहमति देने की खबरें हैं. पूनियां मंत्रिमंडल में गहलोत के 15 विधायकों को मंत्री बनाए जाने की भी खबरें हैं और इस ऑपरेशन लोटस पार्ट- 2 को दिसंबर से पहले पूरा करने का टारगेट है. लेकिन दोनों खेमों में खुद पायलट की भावी भूमिका को लेकर संशय एवं असमंजस हैं. तीन माह पहले भी पायलट के भाजपा ज्वॉइन करने के प्रबल आसार बने थे. एक दिन अमित शाह और जेपी नड्डा की मौजूदगी में पायलट के 30 विधायकों के साथ भाजपा ज्वॉइन करने की खबरें थी, लेकिन ठीक 24 घंटे पहले ऐनवक्त पर पायलट ने नड्डा को फोन कर दिया और भाजपा ज्वॉइन करने में अपनी असमर्थता जताई.
इन सारे महत्वपूर्ण सवालों पर दोनों पक्षों ने साध रखी है चुप्पी:
दूसरी ओर नड्डा और RSS का स्टैंड शुरू से रहा है. पायलट पहले भाजपा की सदस्यता ज्वॉइन करें और इसके बाद ही किसी दूसरी चीज पर विचार होगा, लेकिन उस समय गहलोत के हाथों पायलट कैम्प की हुई जबरदस्त हार के बाद ये चैप्टर बंद हो गया था. अब नए सिरे से नए हालात में पायलट के भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं चली है. अपने मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह भाजपा में शामिल होने की चर्चाएं है. यदि इस बार सचमुच पायलट भाजपा में शामिल हो जाते हैं, तो सिंधिया के साथ उन्हें भी केन्द्रीय मंत्रिमंडल में कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिल सकती है, लेकिन पायलट का मन केवल राजस्थान में लगता है और फिलहाल उनकी अंतिम मंजिल राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी है, तो फिर ऐसे में एक बार केन्द्रीय मंत्री बनने के बाद पायलट कैसे लौट पाएंगे राजस्थान ? इन सारे महत्वपूर्ण सवालों पर दोनों पक्षों ने चुप्पी साध रखी है.
गहलोत की भी इन सारी घटनाओं पर पैनी नजरें:
दूसरी ओर राजनीति के पुराने एवं जबरदस्त खिलाड़ी अशोक गहलोत की भी इन सारी घटनाओं पर पैनी नजरें है. गहलोत पिछली बार विरोधी ताकतों को जबरदस्त मात देने के बाद अब लड़ाई के दूसरे चरण के लिए भी पूरे तौर पर तैयार हैं. गहलोत ने पहले से ही प्लान B और C बना रखा है. कांग्रेस आलाकमान और तीन सदस्यीय कमेटी में गहलोत की जबरदस्त पकड़ है. पिछली बार गहलोत कैम्प ने लगभग एक दर्जन भाजपा विधायकों में भी सेंधमारी कर ली थी और चार भाजपा विधायक तो विश्वास मत के दिन हो गए थे सत्र से नदारद. और गहलोत ने जीता था विश्वासमत 123 वर्सेज 71 के रिकॉर्ड बहुमत से. लेकिन इस बार गहलोत के सामने थोड़ी ज्यादा बड़ी चुनौती है.