बीकानेर के युवा पवन ने बांधी विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी

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बीकानेर। राजस्थान सम्पूर्ण राष्ट्र में अपनी संस्कृति तथा प्राकृतिक विविधता के लिए पहचाना जाता है। राजस्थान के रीति- रिवाज,यहां की वेशभूषा तथा भाषा सादगी के साथ-साथ अपनेपन का भी अहसास कराते है। राजस्थान के लोग रंगीन कपड़े और आभूषणों के शौकीन होते हैं। राजस्थान के समाज के कुछ वर्गों में से कई लोग पगड़ी पहनते हैं, जिसे स्थानीय रूप से साफा, पाग या पगड़ी कहा जाता है।
पगड़ी राजस्थान के पहनावे का अभिन्न अंग है। बड़ो के सामने खुले सिर जाना अशुभ माना जाता है। यह लगभग 18 गज लंबे और 9 इंच चैड़े अच्छे रंग का कपड़े के दोनों सिरों पर व्यापक कढ़ाई की गई एक पट्टी होती है, जिसे सलीके से सिर पर लपेट कर पहना जाता है। पगड़ी सिर के चारों ओर विभिन्न व विशिष्ट शैलियों में बाँधी जाती है तथा ये शैलियां विभिन्न जातियों और विभिन्न अवसरों के अनुसार अलग- अलग होती है। रियासती समय में,पगड़ी को उसे पहनने वाले की प्रतिष्ठा (आन) के रूप में माना जाता था। इसी ऐतिहासिक परम्परा को आगे बढ़ाने का जिम्मा ऊठाया है बीकानेर के कलाकार पवन व्यास ने, व्यास पहले भी अंगुलीयों पर सबसे छोटी राजस्थानी पाग-पगड़ीयां बांध कर विश्व में बीकानेर -राजस्थान का नाम रोशन कर चुके है।
बनाई विश्व की सबसे बड़ी पगड़ी
पगड़ी के कपड़े लम्बाई: 478.50 मीटर (1569.86 फुट)
पगड़ी: 55 पगड़ी (8.7 मीटर प्रत्येक)
पगड़ी बंधने के बाद परिधी: 7 फुट 8 इंच
लम्बाई व चैड़ाई: लगभग 2 फुट से अधिक
समय: लगभग 30 मिनट
बीकानेरी कलाकार पवन व्यास ने बुधवार को बीकानेर के धरणीधर रंग मंच पर विश्व की सबसे लंबी ओर बड़ी पगड़ी बांधने का कारनामा किया। कार्यक्रम का शुभारंभ लोकेश व्यास द्वारा शंखनाद के साथ गणेश वंदना से हुवा। पवन व्यास ने सुबह 11 बज कर 11 मिनट एवं 11 सैकंड पर यह पगड़ी मिस्टर राजस्थान का खिताब जीत चुके राहुल शंकर थानवी के सर पर बांधना शुरू किया जो कि महज 30 मिनट मे 55 साफो को मिलाकर 2 फीट चैड़ी एवं 2 फीट लंबी पगड़ी बाँध डाली। एक साफे की लंबाई लगभग 8.7 मीटर तथा पगड़ी का वजन 15 से 20 किलो था साथ ही इस पगड़ी में किसी भी प्रकार की पिन एवं गुल्यू का प्रयोग नही किया गया है।
11 वर्ष से लगे है जनता की सेवा में
मानव के क्रमिक विकास के साथ ही उसके वस्त्र-परिधान का भी विकास होना प्रारम्भ हो गया। समय के साथ उसके आचार-व्यवहार, रहन-सहन, खान-पान आदि में बदलाव आया उसी प्रकार उसकी वेशभूषा में भी बदलाव आया। वर्तमान में एक ओर राजस्थानी वेश भूषा और भाषा का प्रचलन कम होता दिख रहा है तो एक ओर बीकानेर के 20 साल के युवा पवन व्यास राजस्थान की अद्भूत संस्कृति बचाने में लगे है। व्यास पिछले 11 वर्षो से साफा बांधने का कार्य कर रहे है, विभिन्न प्रकार के साफे बांधने की कला में माहिर व्यास ने अभी तक हजारों साफे नि:शुल्क बांध दिये। उनका कहना है कि मेरा उद्देश्य के वल समाज में साफे की साख बचाएं रखना है। व्यास ने अपनी इस कला का श्रेय अपने गुरूपिता पं. बज्रेश्वर लाल व्यास व चाचा गणेश लाल व्यास को दिया। किकाणी चैक स्थित व्यास परिवार पिछले 4 दशक से अधिक समय से समाज में नि:शुल्क साफा बांधने का कार्य कर रहा है। व्यास ने बताया कि वह आदमीयों के सर पर तो साफा बांधते ही है साथ में गणगौर महोत्सव में ईसर व भाये के लिए, श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर लड्डू गोपाल के व विभिन्न अवसरों पर विभिन्न प्रकार के साफे बांधते है।

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