मजदूर के प्रति आज संवेदनात्मक सोच की आवश्यकता

Need for sensitive thinking towards laborers today
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बीकानेर। देश का कामगार हमेशा से विकास की अवधारणा में प्रासंगिक रहा है। परन्तु वर्तमान दौर में एक लम्बे समय से कोरोना काल के कारण मजदूर की प्रासंगिकता कई अर्थों में महत्त्वपूर्ण हो गई है। इसी केन्द्रीय विचार के साथ ई-तकनीक के माध्यम से प्रज्ञालय संस्थान द्वारा एक विचार-संवाद किया गया। जिसका विषय ‘कोरोना काल और मजदूरÓ रखा गया। विचार-संवाद में विषय प्रवर्तन करते हुए संस्था के राजेश रंगा ने कहा कि मजदूर की प्रासंगिकता आज ज्यादा है क्योंकि देश में एक बहुत बड़ी आबादी मजदूर वर्ग की है जो विभिन्न अर्थों में अपनी भूमिका निभाती है। विचार-संवाद की अध्यक्षता करते हुए सोजत वरिष्ठ बाल साहित्यकार व शायर अब्दुल समद राही ने कहा कि भारतीय संदर्भ में मजदूर वह वर्ग है जिसके प्रति आज हमें सबसे ज्यादा संवेदनशील होकर आगे आना चाहिए। खासतौर से वर्तमान कालखण्ड में ऐसी आवश्यकता ज्यादा है। संवाद के मुख्य अतिथि कवि-कथाकार कमल रंगा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि देश और विश्व का मजदूर आज आर्थिक, सामाजिक, स्वास्थ्य आदि मोर्चों पर जूझ रहा है। ऐसे में पूरी मानवता का ये दायित्व बनता है कि हमारे भाई मजदूर को अपनी तरफ से बन सके वो इमदाद करें। जिससे मजदूर विकास की मुख्य धारा में जुड़ा रहे। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि एडवोकेट इसरार हसन कादरी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि आज प्रवासी मजदूरों की स्थिति बहुत खराब है। इस ओर ठोस एवं सकारात्मक काम होने चाहिए ताकि मजदूर वर्ग का मनोबल ऊँचा रहे। वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब ने इस अवसर पर मजदूर पर केन्द्रित अपनी ताजा गजल ‘यही वो तबका है हम जिस पे नाज करते हैं/हमारे मुल्क की अजमत बढ़ाएंगे मजदूर/अगर कोई न निभाए तो $गम नहीं उसका/हर-एक दर्द का रिश्ता निभाएंगे मजदूरÓ पेश की। इसी प्रकार वरिष्ठ शायर कासिम बीकानेरी ने भी मजदूरों पर केन्द्रित अपनी $गज़ल ‘किस्मत की मार खाया मज़दूर है जहां में/हालात से वो अपने मजबूर है जहां में/गर्मी में छांव से भी जो दूर है जहां में/ उसका बदन थकन से भी चूर है जहां मेंÓ प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि कोरोना काल ने मज़दूरों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। वरिष्ठ कवयित्री मधुरिमा सिंह ने मजदूरों पर काव्य पाठ किया और कहा कि मजदूर मजबूर नहीं है, श्रमिक तो हम सभी हैं। अपनी रोजी-रोटी के लिए सभी श्रम करते हैं। कोई श्रमिक अगर पीछे रह गया तो हम सब समर्थ श्रमिकों का कर्तव्य है कि उसका हाथ कोरोना काल में ना छोड़ें, उसे अपने बराबर ही रखें। विचार-संवाद में इतिहासविद् डॉ. फारूक चौहान ने कहा कि इतिहास गवाह है कि मजदूर का संकट देश का संकट है और उसके संकट के कारण ही विकास की दर में कमी आती है। वर्तमान के इस विकट कालखण्ड में मजदूर की स्थिति बहुत गंभीर बनी हुई है। विचार-संवाद में जैसलमेर के शायर माजिद खाँ गौरी, कवि पुखराज सोलंकी, गिरिराज पारीक ने कहा कि मजदूर देश के आर्थिक विकास की रीढ़ की हड्डी है। इस पर वर्तमान दौर में संकट आना चिंता का विषय है। इसी क्रम में करुणा क्लब के हरिनारायण आचार्य, इंजी. आशीष रंगा ने कहा कि हमारी प्राथमिकता में मजदूर का स्थान ऊँचा होना चाहिए।

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