दान एक प्रवृति और उसकी आत्मा प्रेम है – आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.

Charity is a tendency and its soul is love - Acharya Shri Vijayraj ji M.S.
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बीकानेर। दान, शील, तप और भाव धर्म के चार द्वार हैं, इनमें कोई भी एक द्वार मकान में प्रवेश करा देता है। वैसे ही दान पहला द्वार है। तत्वार्थ सूत्र में कहा गया है कि दान में कृतकृत्य हो देने वाला और गद्गद् हो लेने वाला तब दान का महत्व है। यह सद्विचार श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने धर्म सभा में व्यक्त किये। बागड़ी मोहल्ला स्थित सेठ धनराज ढढ्ढा की कोटड़ी में हुई धर्मसभा में आचार्य श्री ने कहा कि दान एक प्रवृति है और उसकी आत्मा प्रेम है। दान एक क्रिया है। उसके साथ आपका आदर भाव, अहोभाव जुड़ा रहता है, तब तक वह वरदान है।
दुख और दुख के कारण पर व्याख्यान देते हुए महाराज साहब ने कहा कि कर्म सत्ता में ताकत नहीं कि वह इंसान को दुखी कर दे, लेकिन हम अपने भावों से, विचारों से दुखी होते हैं। क्योंकि हम उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। कर्म सत्ता दुख दे सकती है, उसकी यह ताकत है, लेकिन उसमें दुख से दुखी करने का साहस नहीं है। हम दुख को स्वीकार करते हैं, इसलिए दुखी हैं। आचार्य श्री ने कहा कि ज्ञान चेतना में रमण करने वाला दुखी नहीं होता है।
उत्तराध्ययन सूत्र पर हुई गोष्ठी :-
इससे पूर्व जिन शासन के चार मूल सूत्र में से पहले सूत्र उत्तराध्ययन सूत्र पर गोष्ठी पर लाडनू से पधारी समणी कुसुम प्रज्ञा जी ने व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि उत्तराध्ययन सूत्र को जैन जगत में भगवान महावीर की अंतिम वाणी माना जाता है। कुसुम प्रज्ञा जी ने बताया कि इसमें 36 अध्याय हैं। इस सत्र में जीवन के आदिकाल से अनन्तकाल तक, विनय से जीव-अजीव के भेदकाल, मोक्ष जाने तक का सरल सुत्बोध शैली में वर्णन उपलब्ध है। इसका एक-एक सूत्र जीवन में उतारने लायक है। भगवान की इस अनमोल वाणी उत्तराध्ययन सूत्र का आदि अध्ययन विनय है। तीर्थंकर भगवान महावीर द्वारा आगम की अर्थरूप में वागरणा की गई। उस वाणी को गणधरों ने सूत्र रूप में गुम्फित किया।
श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजय कुमार लोढ़ा ने बताया कि उत्तराध्ययन सूत्र का व्याख्यान सत्र दो भागों में चला। जिसमें मुनि- महासती सहित धर्मनिष्ठ श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया। धर्मसभा में श्रावक-श्राविकाओं ने समूह में गुरुभक्ति गीत प्रस्तुत किया।
आचार्य श्री विजयराज जी महाराज साहब ने ‘जन्म मानव का मिला तकदीर से, सफल कर इसको सही तदबीर से’ भजन सुनाकर अपने मानव जन्म को सार्थक करने की बात धर्मसभा में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं से कही। अध्यक्ष लोढ़ा ने बताया कि गुप्त तपस्या के दौर चल रहे हैं। श्राविका अंजू बाँठिया ने बुधवार को अपनी 15 की तपस्या की पारणा की है। इस अवसर पर तपस्या करने वालों को धन्यवाद के उद्घोष धर्मसभा में गूंजायमान हुए। महाराज साहब ने तेला, बेला, आयम्बिल एकासना और उपवास करने वालों को आशीर्वाद दिया।
भजन संध्या शनिवार को :-
श्री शान्त क्रान्ति जैन युवा संघ के कार्यकारी अध्यक्ष एवं प्रचार मंत्री विकास सुखाणी ने बताया कि विश्व वल्लभ, युगपुरुष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराज जी म.सा. के स्वर्णीम दीक्षा वर्ष के उपलक्ष्य में श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ की ओर से ढढ्ढा कोटढ़ी , बागड़ी मोहल्ला में शनिवार 30 जुलाई की शाम 7.30 बजे से रात 11 बजे तक भजन संध्या का आयोजन किया जाएगा।

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