हमें हमारी वाणी पर संयम रखना चाहिए: आचार्य श्री विजयराज जी म.सा.

Charity is a tendency and its soul is love - Acharya Shri Vijayraj ji M.S.
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बीकानेर। जीभ पर लगा घाव तो जल्दी ठीक हो जाता है लेकिन जो घाव जीभ से लगता है, वह फिर आसानी से नहीं भरता है। हमें चिंतन यह करना है कि हमारी जीव्हा से किसी के दिल पर घाव तो नहीं लग रहा। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के 1008 आचार्य श्री विजयराज जी म.सा. ने यह  सद् विचार शनिवार को सेठ धनराज ढ़ढ्ढा की कोटड़ी में चातुर्मास पर चल रहे अपने नित्य प्रवचन में व्यक्त किए।आचार्य श्री ने कहा कि हमें हमारी वाणी पर संयम रखना चाहिए । हमारे संबंधो में बोली का बड़ा महत्व है । संबंधो को मधुर बनाने के लिए बोली पर नियंत्रण रखना चाहिए । बोली का भी विज्ञान है, इसे समझना चाहिए । जो यह विज्ञान नहीं समझता वह अहम, आग्रह, अनिवेश में कांटे तो बो देते हैं, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि यह कांटे हमें ही चुभते हैं ।
सलम्बूर के अपने चातुर्मास का एक प्रसंग बताते हुए कहा कि चातुर्मास में एक स्थानकवासी जो जज थे, वह भी आये थे । एक दिन उनसे पूछा गया कि आपकी अदालत में बोली के मामले ज्यादा आते हैं या गोली के, इस पर जज साहब ने कहा कि महाराज जी गोली के मामले तो बहुत कम आते हैं, हमारे यहां तो बोली से बिगड़े मामलों की भरमार है
महाराज साहब ने कहा कि मैं कहना चाहता हूं कि जिस बोली से संबंध मधुर बनाए जा सकते हैं, सौहार्द कायम किया जा सकता है, उसी बोली  को बिगाड़ देना कलह का सबसे बड़ा कारण बन जाता है। बिगड़ती तो जीभ है और पूरा जीवन बिगड़ जाता है। एक जीभ सुधरती है तो जीवन सुधर जाता है। अब तय आपको करना है कि आप अपना जीवन बिगाडऩे में लगे हैं या सुधार करना है। महाराज साहब ने बताया कि विरोध, विवाद की जिंदगी में नहीं जीना, सहजता, सरलता का जीवन जीना है। इसके लिए भावों में क्षमाशीलता लानी चाहिए। याद रखो, भविष्य बहुत बड़ा है, भविष्य अनंत है, इससे आशा रखनी चाहिए। साथ ही मन में आशा और उमंग रखोगे तो सब कुछ होगा। क्षमा करना एक आन्तरिक तप है और यह कठिन तप है। आप में साहस, संकल्प, समर्पण है तो सब कुछ संभव है। क्षमा के चार चरण है, इन्हें सदैव याद रखना चाहिए और अपने आचरण में इन्हें ढालने का प्रयास करते रहना चाहिए। पहला अपराधों को भूल जाना, दूसरा मन में रोष, आक्रोश ना रखना, अच्छाईयों को उजागर करना और चौथा है बुराईयों को ढक़ देना। कोई आपके साथ बुरा करे, गलत करे तो उसे भूल जाएं, किसी को आचरण से  क्षमा कर दिया है तो मन में उसके प्रति आक्रोश ना रखें, अगर आप किसी में अच्छाई देखते हैं तो उसको उजागर करें तथा बुराई दिखाई दे तो उसे ढक़ने का प्रयास करें।
आचार्य श्री ने कहा कि संसारी व्यक्ति जिन बातों को भूलाना होता है, उन्हें तो याद रखता है और जिन्हें याद रखना होता है, उसे भूलाता रहता है। यह संसारी में सबसे बड़ी कमी है। महाराज साहब ने भजन ‘ मत बोल रे मत बोल भाई, तू कड़वे बोल, तू बजा प्रेम की बांसुरिया, मधुर- मधुर वचनों से भाई सुर नर वश में हो जाते, कटु वचनों से घर वाले भी तेरे पास नहीं आते’ सुनाकर गीत के शब्दों की अहमियत से श्रावक-श्राविकाओं को अवगत कराया।
सामूहिक एकासन का कार्यक्रम आयोजित
जैन धर्म में एकासन का बड़ा महत्व है। जैन समाज के साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविकाएं चातुर्मास काल में विशेष तौर से तप, ध्यान, ज्ञान की तपस्याओं में संलग्न रहती हैं। श्री शान्त क्रान्ति जैन श्रावक संघ के अध्यक्ष विजयकुमार लोढ़ा ने बताया कि की ओर से रविवार को अग्रसेन भवन में सामूहिक एकासन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें बड़ी सं6या में स्थानकवासियों ने भाग लिया। संघ की ओर से इन्दौर, देशनोक, नागौर , ब्यावर और होसपेट से आए श्रावक-श्राविकाओं का स्वागत किया गया। वहीं मोहनलाल झाबक की 26 की तपस्या, चन्द्रकला लूणीया की 28 की , स्वीटी बोथरा व नित्या मुसर्रफ की आठ की तपस्या चल रही है।

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