शील, व्रत, संयम और पांच महाव्रत साधु के अमूल्य हीरे- आचार्य श्री महाश्रमण

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बीकानेर। संस्कृत का एक श्लोक है ‘शीलम बयातिम,जो बहु फलाहिम, फन्तोण सुख बघिलसय बीती दुग्गलो तवसी, कोटी ए काती जीणई’ साधु के पास एक बड़ी संपदा होती है शील, व्रत, संयम की साधना और साधु के पांच महाव्रत है। अहिंसा, सत्य, चोरी नहीं करना, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह इनको पांच मूल्यवान या अमूल्य हीरे कहा जा सकता है। आचार्य श्री महाश्रमण ने सोमवार को कोचरों के चौक में जैनम जयति शासनम विषय पर प्रवचन देते हुए कहा कि साधु को गृहस्थ की कामना करना थोड़े के लिए बहुत को गंवाने के समान है। यह पांच महाव्रत जिसको ये मिल जाते हैं, उनके सामने संसार के आप गृहस्थों के जो हीरे हैं, वो तो बहुत ही अल्पमहत्व या अमहत्व वाले बन सकते हैं। क्योंकि गृहस्थों के जो हीरे हैं, वो तो आपके लिए ज्यादा से ज्यादा इस जीवन काल के लिए है। इसके बाद तो काम आने वाले नहीं हैं। साधु के पास जो हीरे हैं वह आगे के लिए ही कल्याण समायक हो सकते हैं। साधु के लिए पांच महाव्रत है, वह बड़ी संपदा है। उसकी सुरक्षा करना साधु का कर्तव्य है। क्योंकि दुनिया में चोरी करने वाले मिल सकते हैं, लूटने वाले भी मिल सकते हैं। हमारे जो हीरे लूटने वाला यह मोहनीय कर्म हो सकता है। तो मोहनीय कर्म से सावधान रहें, ऐसा मोह ना हो जाए , मोह हो गए और लूट लिए। कोई साधु यह सोचे कि साधुपणा ले लिया, देख लिया क्या खास बात है। वापिस गृहस्थ बन जाऊं, तो वापिस कोई वास्तु दुर्भाग्य से गृहस्थ बन जाता है, साधुपन छोड़ देता है, वह तो अभागा व्यक्ति हीरे मिले और इन हीरों को मानो गंवा दिया। थोड़े से सांसारिक आकर्षण में आकर इस संयम रूपी रत्न को खो दे, थोड़े के लिए बहुत को खोना हो सकता है। कोई साधु यह सोच ले कि मैं साधना कर रहा हूं, इसका फल हो आगे के जन्मों में मैं सम्राट बन जाऊं, चक्रवर्ती बन जाऊं, ऐसी निदान रूप इच्छा करता है। वह भी मानो इस संयम की साधना को थोड़े के लिए खो देता है। आचार्य श्री ने कहा कि चारित्रिक आत्माओं का चारित्र है वो अमूल्य चीज है। यह अमूल्य चीज कहीं चली ना जाए, कहीं गुम ना हो जाए, इसकी सुरक्षा के प्रति हम चारित्रिक आत्माओं को जागरूक रहना चाहिए। सभा में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि गृहस्थ लोग जो आप हैं, वो भी कई बार थोड़े के लिए बहुत को खोने की सोच सकते हैं। संपति के लिए, पैसे के लिए ईमानदारी को गंवा देना किसी संदर्भ में थोड़े के लिए बहुत को गंवाना हो सकता है। आदमी ज्यादा लाभ के लिए बेईमानी करलो, ठगी करलो, झूठ बोल लो, पैसा ज्यादा मिल जाएगा। इसके लिए ईमानदारी खोना थोड़े के लिए बहुत को खोना है। गृहस्थ को भी संयम साधना का पालना करना चाहिए। अहिंसा जीवन में हो, ईमानदारी हो, संयम हो यह प्रयास रहना चाहिए। प्रवचन आरंभ आचार्य श्री ने नमस्कार महामंत्र से किया, साध्वी प्रमुखा विश्रुतविभा जी ने आचार्य श्री के स्वागत में कहा कि जिस संघ में प्रेरणा , प्रोत्साहन होता है वह हमेशा गतिशील होता है । तेरापंथ धर्म संघ इसलिए आगे बढ़ रहा है, आचार्य श्री प्रहरी की तरह सब ध्यान में रखते हैं। वह हमारी चिंता करते हैं, आचार्य के सानिध्य में आनंद की अनुभूति होती है। इस अवसर पर सभी संतो और समणियों समणी मधुर प्रज्ञा, दिनेश मुनि आदि ने जिझासा रखी, जिसका समाधान आचार्य श्री ने बताया।
इन्होंने दी प्रस्तुतियां
श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी सभा के अध्यक्ष पदम बोथरा ने बताया कि आचार्य श्री महाश्रमण के शहर आगमन और प्रवचन देकर उत्साहवद्र्धन करने पर तेरापंथ किशोर मंडल के भरत नोलखा ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया। वहीं संजय ने ’ हर बार तेरे दर पर, तुझे सीस नवाऊंगा, गुरुवर महाश्रमण सुन लो, आपकी महिमा गाऊंगा ’ प्रवीण सेठिया ने ‘वन्दन है शत-शत वन्दन है ’ सुषमा बोथरा एवं उनकी टीम ने ‘ बीकानेर धन्य हुआ गुरुचरण की धूल पाकर’ भाव भरा गीत प्रस्तुत किया। सुरपत बोथरा ने स्वागत भाषण दिया। श्री जैन पब्लिक स्कूल के अध्यक्ष विजय कोचर, जितेन्द्र कोचर ने कोचरों के चौक में पधारने और पावन करने पर कहा कि यह ऐतिहासिक क्षण बन गया है। कोचर परिवार और जैन समाज पर आपकी महत्ती कृपा हुई है। सभा के मंत्री सुरेश बैद ने भी स्वागत उद्बोधन दिया। श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथ महिला मंडल की ओर से गीत ‘बोलो जय-जयकार युगप्रधान पधार्या आज, उतारां आरती’ प्रस्तुत किया गया। श्री रतन नेत्र ज्योति संस्थान के बाबूलाल महात्मा, अणुव्रत समिति के झंवरलाल गोलछा ने भी संस्था के सामाजिक कार्यों से आचार्य श्री को अवगत कराया। विनोद बाफना, सुरेन्द्र कोचर, सुमित कोचर सहित पूरी टीम ने व्यवस्था में सहयोग किया।

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