


जयपुर। राजस्थान में बढ़ते म्युकोर माइकोसिस यानि ब्लैक फंगस के संक्रमण के बाद राज्य सरकार की ओर से एक बोर्ड का गठन किया गया था। जयपुर के सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के अधीन इस म्युकोर माइकोसिस बोर्ड का गठन किया गया था, ऐसे में हाल ही में बोर्ड की ओर से ब्लैक फंगस संक्रमण को लेकर एक रिपोर्ट जारी की गई है। बोर्ड का कहना है कि 95 फीसदी ऐसे मरीज ब्लैक फंगस की चपेट में आए हैं, जिनको कोविड-19 वैक्सीन की दोनों डोज नहीं लगी थी। इसके अलावा स्टेरॉयड के बेतहाशा उपयोग की बात भी सामने आई है। इस मामले को लेकर सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. सुधीर भंडारी का कहना है कि ब्लैक फंगस के बढ़ते मामलों के बाद सरकार की ओर से एक बोर्ड के गठन का निर्देश दिया गया था और एसएमएस मेडिकल कॉलेज की ओर से इस बोर्ड का गठन किया गया, जिसमें ब्लैक फंगस के कारणों का विश्लेषण किया गया।
35 फीसदी मरीजों की आंखों तक पहुंचा फंगस
डॉ. सुधीर भंडारी का कहना है कि एसएमएस अस्पताल में डेडिकेटेड ब्लैक फंगस यूनिट का संचालन किया जा रहा है। ऐसे में अब तक 400 मरीज अब तक अस्पताल में भर्ती हुए हैं, जिनमें से 315 मरीजों की सर्जरी हुई और 35 फीसदी मरीजों की आंखों तक यह संक्रमण पहुंच गया, जिसमें से 10 फीसदी मरीजों की आंख बचा ली गई, लेकिन 20 फीसदी मरीजों की आंख निकालनी पड़ी। डॉ. सुधीर भंडारी ने यह भी माना है कि तय प्रोटोकॉल के हिसाब से स्टेरॉइड का उपयोग निजी अस्पतालों में नहीं किया गया, जो एक संक्रमण का मुख्य कारण बना।
मरीजों ने झोलाछाप चिकित्सकों से इलाज करवाया
डॉ. सुधीर भंडारी का कहना है कि बोर्ड ने जब फंगस से जुड़े मामलों की जानकारी ली तो सामने आया कि तकरीबन 99 फीसदी मरीज निजी अस्पतालों से रेफर होकर सरकारी अस्पताल पहुंचे। डॉक्टर भंडारी ने दावा किया है कि जयपुर के सरकारी कोविड-19 सेंटर से ब्लैक फंगस का एक भी मामला सामने नहीं आया। इसके अलावा मरीजों की टिशू बायोप्सी करवाई जा रही है, ताकि ब्लैक फंगस के कारण ब्लड में क्लॉट और थ्रोम्बोसिस की जानकारी मिल सके। इसके अलावा डॉ. सुधीर भंडारी ने यह भी दावा किया है कि अस्पताल में बाहर के राज्यों से भी मरीज इलाज करवाने पहुंचे हैं, जिनमें अधिकतर मरीजों ने झोलाछाप चिकित्सकों से इलाज करवाया।