केवल ट्यूशन फीस का 60 प्रतिशत हिस्सा वसूल सकेंगे निजी स्कूल

केवल ट्यूशन फीस का 60 प्रतिशत हिस्सा वसूल सकेंगे निजी स्कूल
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जयपुर। पिछले काफी समय से चल रहे निजी स्कूल फीस विवाद का आज राजस्थान हाई कोर्ट ने फैसला कर दिया है। हाई कोर्ट के सीजे इंद्रजीत माहन्ती की खंडपीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाते हुये कहा कि निजी स्कूल कुल ट्यूशन फीस का 60 फीसदी हिस्सा बतौर फीस वसूल सकते हैं। कोर्ट ने अपने फैसले में फीस वसूली को लेकर अक्टूबर माह में राज्य सरकार की ओर से गठित कमेटी की दी गई सिफारिशों पर मुहर लगाई है।
क्यों किया गया है ऐसा
दरअसल कोरोना काल में निजी स्कूलों में बच्चों की फीस को विवाद चल रहा था। इस संबंध में राज्य सरकार ने पूर्व में 9 अप्रेल और 7 जुलाई के दो अलग-अलग आदेश निकाले थे। इनके जरिये सरकार ने स्कूल फीस को स्थगित कर दिया था। राज्य सरकार के इन आदेशों के खिलाफ निजी स्कूलों ने उच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी। इस पर कोर्ट की एकलपीठ ने 7 सितंबर को निजी स्कूलों को ट्यूशन फीस का 70 प्रतिशत हिस्सा बतौर फीस लेने के लिये कह दिया था। लेकिन कोर्ट की सिंगल बैंच के इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार और एडवोकेट सुनील समदडिय़ा ने खंडपीठ में अपील दायर कर दी।
खंडपीठ ने सिंगल बैंच के फैसले पर रोक लगा दी थी
इस पर खंडपीठ ने सिंगल बैंच के फैसले पर रोक लगा दी। बाद में कोर्ट के निर्देश पर राज्य सरकार की कमेटी ने 28 अक्टूबर को फीस के संबंध में अपनी सिफारिशें दी थी। लेकिन उसे भी निजी स्कूलों और अभिभावकों ने उसे भी मनाने से मना कर दिया था। इस पर खंडपीठ ने सभी पक्षों की बात को दुबारा सिलेसिलवार सुनकर अब फैसला दिया है कि निजी स्कूल ट्यूशन फीस का 60 फीसदी हिस्सा फीस के रूप में ले सकते हैं।
यह कहा गया है सरकार की सिफारिशों में
राज्य सरकार की कमेटी की सिफारिशों के मुताबिक कोरोना काल में स्कूल खुलने से पूर्व जो स्कूलें ऑनलाइन क्लासेज दे रही है वे अभिभावकों से ट्यूशन फीस का 60 प्रतिशत चार्ज कर सकती है। यह चार्ज वे ही अभिभावक देंगे जिनका बच्चा ऑनलाइन क्लासेज ले रहा है। जो बच्चे ऑनलाइन क्लासेज नहीं लेना चाहते उनसे कोई चार्ज नहीं लिया जाएगा। स्कूलें खुलने के बाद जो कोर्स संबंधित बोर्ड तय करेगा उसके अनुसार फीस ले पाएंगे।
कोर्स करवाने की जिम्मेदारी स्कूल की होगी
वहीं जिन बच्चों ने ऑनलाइन क्लासेज नहीं ली है उनका पूरा कोर्स करवाने की जिम्मेदारी स्कूल की होगी। इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि जिन स्कूलों ने इस सेशन की फीस तय नहीं की है वे फीस रेगुलेशन एक्ट के तहत 15 दिन में फीस तय करें। फीस तय करने का काम स्कूल संचालक और पेरेंट्स एसोसिएशन मिलकर करेंगे। किसी भी अभिभावक को अगर तय फीस में आपत्ति है तो वह डिवीजनल फीस कमेटी के समक्ष आपत्ति कर सकता है।
आप सतर्क रहिये, क्योंकि कोर्ट ने केवल ट्यूशन फीस के लिये कहा है
अब इस मामले में अभिभावकों को सतर्क रहने की जरुरत है। वह इसलिये कि कोर्ट ने केवल ट्यूशन फीस का 60 फीसदी हिस्सा लेने के लिये कहा है न पूरी फीस का 60 प्रतिशत। क्योंकि इसमें अभी कई पेंच सामने आयेंगे। वह यह कि कुछ स्कूलों ने अपने फीस स्ट्रक्चर को अलग-अलग मदों में बांट रखा है। यथा ट्यूशन फीस, खेल गतिविधियां, सांस्कृतिक गतिविधियां और कम्प्यूटर फीस आदि में। लेकिन बहुत सी स्कूलों ने ऐसा नहीं कर रखा है। वे अपनी पूरी सालाना फीस को ही ट्यूशन फीस बताकर अभिभावकों की जेब से पैसा खींचना चाहते हैं। लिहाजा आप सतर्क रहें और स्कूल से फीस स्ट्रक्टचर का ब्रेकअप मांगे। यानी कि कुल फीस में से ट्यूशन फीस कितनी है. उसका 60 फीसदी हिस्सा निकलवाकर उसे ही देवें।

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