समृद्ध व गौरवशाली रहा है बीकानेर का नगर स्थापना दिवस

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घरों में रहकर मनाया नगर स्थापना दिवस
बीकानेर। बीकानेर नगर का 532 साल का गौरवशाली इतिहास समृद्धि व खुशहाली से जुड़ा हुआ है। बीकानेर नगरवासियों के लिए इससे जुड़ी यादों के साथ शनिवार को बीकानेर नगर का 533 वां स्थापना दिवस मनाया। घरों में सजी-धजी महिलाओं ने अपने पूरे परिवार के साथ नगर स्थापना दिवस के उपलक्ष में नई (कोरी) मटकी का पूजन कर घरों में बने पर परागत रूप से खीचड़े, ईमलाणी (ईमली का रस), घृत, दुलडिय़ा फुल्के, बड़ी की सब्जी के साथ बनाए गए अन्य पकवानों का भोग लगाकर अपने, अपने परिवार तथा नगर वासियों के लिए सुख-शांति व समृद्धि के साथ कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से मुक्ति दिलाने की अरदास अपने ईष्ट देवी-देवताओं से की।
क्यूं बनाते है खीचड़ा व ईमलाणी
532 साल पहले तत्कालीन परिस्थतियां ऐसी रही कि जांगल प्रदेश (बीकानेर) में कम वर्षा के कारण उस वक्त मरुधरा में मोठ व बाजरी (बाजरा) अधिकतायत से होता था। कहते है कि यहां घी आसानी से मिल जाता था, किंतु पीने के पानी नहीं मिलता था। ऐसे में बीकानेर नगर स्थापना दिवस के उपलक्ष में लोग अपने घरों में मूंग-मोठ व बाजरे का खीचड़ा बनाते थे। जो कि अमीर हो या गरीब सभी के घरों में सुलभ हो जाता था। वही ईमलाणी (इमली) इसलिए तैयार की जाती थी कि मरु प्रदेश में स्थापना दिवस के दौरान प्रचण्ड धूप व चलने वाली लू से काफी हद तक राहत दिलाती है।
चंदे की पर परा
ऐसे अस्तित्व में आई बीकानेर नगर स्थापना पर चंदे उड़ाने की पर परा। तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए बीकानेर नगर स्थापना के साथ एक विशेष रूप से तैयार किया गया चंदा उड़ाया था। तब से यह चंदा हर वर्ष स्थापना दिवस पर उड़ाया जाता है। किंतु धीरे-धीरे इस चंदे के साथ-साथ आसानी से हर किसी को सुलभ होने वाली पतंग व मांझे के कारण पर परा पतंगबाजी की ओर मुड़ गई।
इस बार कोरोना की मार
बीकानेर नगर स्थापना दिवस को लेकर पूरे साल इंतजार किया जाता है। किंतु इस बार कोरोना जैसी वैश्विक महामारी की मार बीकानेर नगर स्थापना दिवस पर भी पड़ी है। जिसके कारण न तो पर परागत रूप से उडऩे वाला चंदा उड़ा और न ही पतंगें। अलबत्ता प्रतीक के रूप में शहरी क्षेत्र में चंदे का पूजन किया गया।

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